नब्बे के दशक में मान्यवर कांशीराम जी ने मुझे ग्वालियर की जेल में फूलन देवी के पास जेल से नामांकन भरने के लिए मदद करने हेतु भेजा। कांशीराम उन्हें संसदीय चुनाव में बसपा उम्मीदवार के रूप में उतारना चाहते थे। मुझे लग रहा था कि चूंकि फूलन देवी अभी भी जेल में थी इसलिए मुझे उनके चुनाव प्रबंधन के लिए भी कहा जाएगा। अतः उन्हें जानने के ख्याल से मैंने माला सेन की किताब इंडियाज़ बैंडिट क्वीन: द ट्रू स्टोरी ऑफ़ फूलन देवी की एक प्रति खरीदी। शेखर कपूर इस कहानी पर एक फ़िल्म बनाने जा रहे थे। कपूर और सेन का इसमें निजी लाभ था और इस लाभ के लिए उन्होंने बहुत सारी सच्चाइयों को छिपाया भी था। इस बारे में अरुंधती राय ने ठीक भविष्यवाणी (फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद) की थी जिसके कारण 2001 में फूलन देवी की दुखद हत्या की गई। हालाँकि जब मैंने इंडियाज़ बैंडिट क्वीन पुस्तक पढ़ी तो मैंने पाया कि इस पुस्तक में पिछड़ी जातियों और महिलाओं के बारे में इतनी सारी हकीकतों का बयां था कि मुझे लगने लगा कि इस पुस्तक को हाई स्कूल स्तर पर सभी विद्यार्थियों को पढ़ाना चाहिए। इसने मुझे समझने में मदद की कि क्यों सारे पिछड़े लोग फूलन देवी में देवी दुर्गा की प्रतिमा देख रहे थे और क्यों सेकुलर मीडिया का एक हिस्सा उनको महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली देवी समझ रहा था। दमन का मतलब होता है हमारे मनोबल को तोड़ना। एक नायक इसलिए इस दमन का विरोध करता कि टूटे हुए मनोबल को वापस लाया जाए। फूलन देवी उत्पीड़ित मनोबल को वापस लाने वाली नायिका थी। जैसा कि हमें फ़िल्म में जेम्स बॉण्ड को लड़ाई कर मनोबल वापस लाते देखते हैं।
दुर्भाग्यवश उनकी वीरता को वही संस्कृति परिभाषित कर रही थी जिसने हमें पिछड़ा बनाया हुआ है। हमें फूलन देवी के साथ बात करके उसकी सच्ची वीरता के बारे में जानने का अवसर नहीं मिला। ग्वालियर जाने पर मुझे बताया गया कि जिस आदमी को फूलन देवी का नाम वोटर के रूप में दर्ज कराने की ज़िम्मेवारी दी गई थी उसने समय पर काम नहीं करवाया इसलिए फूलन का नामांकन संभव नहीं हो पाया। बाद में मुझे पता चला कि मान्यवर मुलायम सिंह यादव के कुछ लोग उनको समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाना चाहते थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनना पसंद इसलिए किया कि समाजवादी पार्टी की उस समय लखनऊ में सरकार थी जो कि उन पर चल रहे 48 मुकदमों को वापस ले सकती थी। इन मुकदमों में वह कुख्यात मुकदमा भी था जिसमें 14 फरवरी 1981 में उन्होंने बेहमई गाँव में 22 ठाकुरों की हत्या कर दी थी। यह वही गाँव था जहाँ उनके साथ ठाकुरों ने तथाकथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया था।
चूंकि बहुत सारे पिछड़े वर्ग के लोग फूलन देवी की पूजा दुर्गा के रूप में कर रहे थे, कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने माला सेन और शेखर कपूर की तरह ही लोगों की भावनाओं को अपने फ़ायदे के लिए भुनाया। उनमें से किसी ने यह नहीं पूछा कि क्या फूलन देवी को किसी ने सुधारा? हालाँकि हम लोगों में से कोई भी उनको दोष नहीं दे सकता क्योंकि वे लोग भी उसी धार्मिक-सेकुलर संस्कृति की रचना हैं जो चंबल के डाकुओं और दिल्ली, लखनऊ तथा बॉलीवुड के डकैतों को पैदा करते हैं। कौन किसी से पूछता है कि हम उन लोगों को वोट क्यों दे रहे हैं जो हमारे राष्ट्रीय, राज्य, महानगर और गाँव की तिजोरियों से हमारे नाम पर रुपये लूट रहे हैं।
पिछड़े वर्ग के लोग फूलन देवी की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्होंने ठाकुरों से बर्बर बदला लिया। इसी प्रकार सेकुलर लोगों ने उन्हें एक वीरांगना इसलिए बना दिया क्योंकि उन्होंने पुरुषों से बदला लिया। समस्या यह है कि ठाकुरों ने शुरू में फूलन देवी को उत्पीड़ित नहीं किया था।
पिछड़े लोग उस समय चुपचाप थे जब उसके चाचा बिहारी लाल और चचेरे भाई मायादीन ने दस्तावेज़ों में हेर-फेर करके ज़मीन का पट्टा अपने नाम करवा लिया था और उन्हें परिवार सहित घर से बेदखल कर दिया था। उस समय उन्हें गाँव के बाहर एक छोटी-सी झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। फूलन एक छोटी बालिका थी परंतु उन्होंने नायिका की तरह अपनी चचेरी बहन को घर से खदेड़ दिया और उन्हें खेतों में होरा फलियों को खाने को मजबूर होना पड़ा। तब उनके चचेरे भाई मायादीन ने लड़कियों को घर से बाहर भगा दिया। उस समय मायादीन की उम्र सिर्फ़ 20 साल थी। फूलन को जब उसने ज़मीन वापस नहीं दिया तो फूलन ने उसके दावे को खारिज कर दिया और ईंट मारकर उसे बेहोश कर दिया। यह बहादुराना काम था।
उसकी जाति के लोगों ने तब भी खामोश रहना पसंद किया जब मायादीन ने मज़दूरों को भेज कर उनके पिता के नीम के पेड़ को काट डाला। उनके पिता ने विरोध करना बेहतर नहीं समझा परंतु हमारी 11 वर्ष की नायिका फूलन ने उस समय भी विरोध किया। वह वहाँ धरने पर बैठ गई और मायादीन को चोर कहकर ललकारने लगी। इसकी सज़ा उन्हें मिली। मायादीन ने उसकी शादी पुत्तीलाल से करवा दी जिसकी उम्र उनसे तीन गुनी थी तथा उनके माता-पिता से कई मील दूर पुत्तीलाल का घर था। पुत्तीलाल की जाति के लोगों ने न उनकी परवाह की, न न्याय की परवाह की और न ही बाल विवाह निरोधक कानून की परवाह की। उनके पति पुत्तीलाल (और बाद में उसकी दूसरी पत्नी विद्या) ने उनकी कमज़ोरी का पूरा फ़ायदा उठाया। उनके परिवार और जाति के लोगों ने तब भी उन के साथ न्याय और दया नहीं की जब वह प्रताड़ित औरत के रूप में अपने घर आई। उनकी जाति के मुखिया मायादीन “चोर” ने 1971 में उस पर चोरी का इलज़ाम लगाया और उन्हें थाने में बंद करवा दिया जहाँ उनके साथ बलात्कार और उत्पीड़न हुआ।
फूलन की रीढ़विहीन जाति ने उस छोटी-सी बच्ची को ज़रा-सा भी ख्याल नहीं रखा और इसलिए जब वह फिर से दुर्गा के रूप में आई तो अपने पूर्व पति पुत्तीलाल और दोस्त मल्लाह को उसके बदले का पहला शिकार बनाया। नारीवादी लोग इस बात को आसानी से भूल जाते हैं कि फूलन ने अपने पूर्व पति की दूसरी पत्नी विद्या से भी बदला लिया था। फूलन उससे ज़्यादा नफ़रत करती थी तथा उसने खुद स्वीकार किया था कि वह विद्या और पुत्तीलाल दोनों की हत्या करना चाहती थी परंतु बाद में उसने उन दोनों की हड्डियाँ तोड़ने का फ़ैसला किया ताकि वे दोनों ज़िंदा रहें जिससे लोग देख सकें कि किस तरह फूलन ने अपने अपमान का “बहादुराना” बदला लिया। दो ठाकुरों ने फूलन देवी की हत्या कर दी। हालाँकि वह एक नायिका थी परंतु वह सिर्फ़ बदला लेना जानती थी न कि मुक्ति देना।
पर्याप्त रूप से मज़बूत सांस्कृतिक बुनियाद के अभाव के बावजूद प्रजातंत्र हम लोगों को जो सर्वश्रेष्ठ चीज़ प्रदान कर सकता है वह है दलितों और पिछड़ों को सत्ता देना परंतु सत्ता हमारी रक्षा नहीं करती जैसा कि लॉर्ड ऐक्टन ने कहा है सत्ता भ्रष्ट बनाती है और सर्व सत्ता संपूर्ण भ्रष्ट बना देती है। इसलिए महात्मा जोतिबा फुले विश्वास करते थे कि आगे विकास करने के लिए भारत को पिछड़े लोगों को खुद सत्ता की चाहत करने वाले नेताओं की ज़रूरत नहीं है बल्कि वीर रक्षक की आवश्यक्ता है जो बलिराजा जैसा खुद का बलिदान देने वाला महान योद्धा हो, जिसे जोतिबा ने यीशु मसीह का प्रतिरूप कहा है। यीशु मसीह (जिनका 2000 वर्ष पहले जन्म हुआ था और 25 दिसंबर को जिनका जन्मदिन मनाया जाता है) एक अच्छे चरवाहे थे जिन्होंने निस्सहाय भेड़ों की रक्षा के लिए खुद को बलि पर चढ़ा दिया। उन्होंने अत्याचारियों के अत्याचारों को खुदे के ऊपर ले लिया और अत्याचारियों को माफ़ी देने तथा उनके हृदय परिवर्तन की माँग की। वे फूलन देवी की ही तरह इस पृथ्वी पर न्याय स्थापित करने के लिए आए थे। वे अत्यचारी राजाओं के खिलाफ़ उठ खड़े हुए थे। यीशु मसीह न्याय के प्रति निर्भीक थे परंतु उनकी बहादुरी एक अलग प्रकार की थी जो अपने दुश्मनों और बद्दुआ देने वालों को भी प्यार और आशीर्वाद देने की शक्ति रखती थी। यीशु मसीह के न्याय के सिद्धांत के अंतर्गत राष्ट्रीय कुशलता और शांति शामिल थी … जैसा कि हम लोगों ने अपने जीवन काल में ही दक्षिण अफ़्रीका में देखा कि यह देश रंगभेद के कारण अन्याय और जातिगत नफ़रत से विखण्डित था परंतु यीशु मसीह ने अपने सेवकों की एक टुकड़ी तैयार की जिसने “घायल और बुझते हुए लोगों” की सेवा की, जैसा कि 11 साल की इस छोटी मल्लाह लड़की ने की थी। आगे विकास करने के लिए यह ज़रूरी है कि हमारे पास खुद को बलिदान कर देने वाले नौकर नेताओं की ज़रूरत है जो कि प्रभु यीशु मसीह की तरह अच्छे चरवाहे हों।
(फॉरवर्ड प्रेस के दिसंबर 2009 अंक में प्रकाशित लेख का संशोधित संस्करण)